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*क्या मंदिर आ रहे दर्शनार्थियों को मरने दें : सुप्रीम कोर्ट*
*बांके बिहारी मंदिर का प्रबंधन अब रिटायर्ड हाई कोर्ट जज संभालेंगे*
दिल्ली/ वृन्दावन/ सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि वह उत्तर प्रदेश श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश, 2025 के तहत गठित राज्य सरकार की समिति के कामकाज को स्थगित रखा जाएगा, जिसे वृंदावन के मंदिर के प्रबंधन का अधिकार दिया गया था।
अदालत ने याचिकाकर्ताओं को अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को हाईकोर्ट में चुनौती देने की अनुमति दी और कहा कि हाईकोर्ट के फैसले तक राज्य की समिति को स्थगित रखा जाएगा। इस बीच, एक अंतरिम समिति बनाई जाएगी, जिसकी अध्यक्षता हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश करेंगे और इसमें सरकारी अधिकारी व मंदिर के पारंपरिक सेवायत (गोस्वामी) शामिल होंगे।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जॉयमाल्या बागची की पीठ ने यह भी कहा कि मई 15 के फैसले को कुछ हिस्से को वापस लिया जाएगा, जिसमें राज्य को मंदिर कोष का उपयोग पुनर्विकास कार्यों में करने की अनुमति दी गई थी। भारत सरकार के अधिवक्ता के एम नटराज की और से इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित संबंधित याचिका की कार्यवाही पर रोक लगाई जाने की मांग की गई और इसे डिवीजन बेंच को सौंपने का अनुरोध किया गया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दिवान, कपिल सिब्बल और गोपाल शंकरनारायणन पेश हुए, जबकि उत्तर प्रदेश की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने पक्ष रखा।
सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि वह उत्तर प्रदेश श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश, 2025 के तहत गठित समिति के संचालन पर स्थगित करने का आदेश पारित करेगा। इस अध्यादेश के तहत मथुरा, वृंदावन स्थित बांके बिहारी मंदिर का प्रबंधन सरकार को सौंपा गया था।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को इस अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के लिए हाईकोर्ट जाने का निर्देश दिया जाएगा और जब तक हाईकोर्ट इस मामले का निपटारा नहीं कर देता, तब तक समिति का संचालन निलंबित रहेगा। मंदिर के सुचारू प्रशासन के लिए इस बीच एक नई समिति का गठन किया जाएगा, जिसकी अध्यक्षता हाईकोर्ट के पूर्व जज करेंगे। इस समिति में कुछ सरकारी अधिकारी और मंदिर के पारंपरिक संरक्षक गोस्वामी समुदाय के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि आदेश कल तक अपलोड कर दिया जाएगा।
जस्टिस सूर्यकांत ने याचिकाकर्ताओं से कहा —
“हम आपको हाईकोर्ट में अध्यादेश को चुनौती देने की अनुमति देंगे। अध्यादेश के तहत बनी समिति का गठन स्थगित किया जाएगा, ताकि हाईकोर्ट के फैसले तक इसे लागू न किया जाए। इस बीच हम हाईकोर्ट के पूर्व जज की अध्यक्षता में एक समिति बनाएंगे। इसमें कुछ सरकारी अधिकारी होंगे और आपमें से भी कुछ लोग होंगे। हम आपको broadly बता रहे हैं। हम समिति के अध्यक्ष को अधिकृत करेंगे कि वह कुछ गोस्वामियों को भी शामिल करें। यह समिति क्षेत्र में विकास संबंधी कार्य देखेगी।”
इसके अलावा, पीठ ने आज आदेश दिया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की एकल पीठ में लंबित उस याचिका की कार्यवाही पर रोक लगाई जाए, जिसमें अध्यादेश को चुनौती दी गई है। अदालत ने मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध किया कि इस मामले को डिवीजन बेंच को सौंपा जाए, क्योंकि संवैधानिक वैधता से जुड़े मामलों की सुनवाई आमतौर पर डिवीजन बेंच द्वारा की जाती है।
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने पक्ष रखा।
ध्यान रहे कि 4 अगस्त को अदालत ने कुछ तीखी टिप्पणियां करते हुए यह सवाल उठाया था कि आखिर यूपी सरकार ने इतनी “जल्दबाज़ी” में अध्यादेश लागू करने की क्या आवश्यकता थी। अदालत ने यह भी असहमति जताई थी कि राज्य सरकार ने 15 मई के फैसले के माध्यम से मंदिर के कोष के उपयोग की अनुमति पाने के लिए “गोपनीय तरीके” से अनुमति हासिल की, जबकि उस दीवानी विवाद में मंदिर प्रबंधन पक्षकार भी नहीं था।
5 अगस्त को यूपी सरकार ने कहा था कि उसका उद्देश्य इस अध्यादेश के माध्यम से किसी भी धार्मिक अधिकार में हस्तक्षेप करने का नहीं है। सरकार ने यह भी बताया था कि जल्द ही इस अध्यादेश को विधानमंडल के पटल पर रखा जाएगा। अदालत ने यूपी सरकार के प्रस्ताव का अवलोकन करने के बाद याचिकाकर्ताओं से भी सुझाव देने को कहा था। साथ ही, दोनों पक्षों से यह भी कहा गया था कि मंदिर प्रबंधन की देखरेख के लिए एक अंतरिम समिति के अध्यक्ष पद हेतु किसी पूर्व हाईकोर्ट जज का नाम सुझाएं। भारत सरकार के अधिवक्ता सार्थक चतुर्वेदी ने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय ने ये साफ कर दिया कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बनाई हुई कमिटी को सभी अधिकार प्रदान करेंगे जिससे कि मंदिर का सुचारू प्रबंधन हो सके । उन्होंने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय ने कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि लोगों को वहां मरने नहीं दिया जाएगा ।
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