
“”सोना पूजन””पर राजेश पहलवान प्रधान जी सैनवा वालों की तरफ से विशेष लेख,
राजेश पहलवान प्रधान जी
गांव सेनवा छाता मथुरा
जो अपने गांव बस्तियों में रक्षाबंधन के त्यौहार पर घर की दीवारों पर जो गेरू से बनाकर ” सोना” पूजन की क्रिया है वह वास्तव में “श्रावणी “पूजन का का अपभ्रंश ही है।।जिसकी पीछे की मूल घटना इस प्रकार है।।
श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को नेत्रहीन माता पिता का एकमात्र पुत्र श्रवण कुमार अपने माता पिता को कांवड में बिठा कर तीर्थ यात्रा कर रहे थे ,मार्ग में प्यास लगने पर वे एक बार रात्रि के समय जल लाने गए थे, वहीं कहीं हिरण की ताक में दशरथ जी छुपे थे। उन्होंने घड़े के में पानी भरने से हवा के बुलबुलों के निकलने के शब्द को पशु का शब्द समझकर शब्द भेदी बाण छोड़ दिया, जिससे श्रवण की मृत्यु हो गई।
श्रवण कुमार ने मरने से पहले दशरथ से वचन लिया कि वे ही अब उनके बदले माता पिता को जल पिलाएँगे। दशरथ ने जब यह कार्य करना चाहा तो नेत्रहीन माता पिता ने अपने पुत्र के अनुपस्थित रहने का कारण पूछा तो दशरथ ने उन्हें सत्य बताया। यह सुनकर उनके माता-पिता बहुत दुखी हुए। तब दशरथ जी ने अज्ञान वश किए हुए अपराध की क्षमा याचना की।
श्रवण कुमार के माता पिता ने अपने एक मात्र पुत्र के मर जाने पर अपना वंश नष्ट हो जाने का शोक व्यक्त किया तब दशरथ ने श्रवण के माता-पिता को आश्वासन दिया कि वे श्रावणी को श्रवण पूजा का प्रचार प्रसार करेंगे। अपने वचन के पालन में उन्होंने श्रावणी को श्रवण पूजा का सर्वत्र प्रचार किया। और आज भी हम अपने घर के बाहर श्रवण कुमार बनाकर पहले उनकी स्तुति कर उन्हें राखी बांधते हैँ
आज ही के दिन संपूर्ण सनातनी श्रवण पूजा करते हैं और उक्त रक्षा सूत्र सर्वप्रथम श्रवण को अर्पित करते हैं।
यह कथा बताती है कि मात्र श्रुति परंपरा के माध्यम से इसे जीवंत रखा गया, हमारा इतिहास कितना शक्ति शाली है कि श्री राम जन्म से पूर्व एक साधारण ग़रीब मातृपितृ भक्त बालक की गाथा को कितने लगन से ज़िंदा रखा है ।
हमने बचपन मे गेरू और रुई लिपटी सींक से घर के द्वार पर इसे बनाया हुआ है और इसे ही तिलक पूजा कर राखी अभिमंत्रित कलावा बांधा चिपकाया जाता है। इसके बाद वही पूजा की थाली भाई को राखी बांधने के लिए प्रयुक्त होती है।
इसमें अधिक ध्यान देने की बात यह है कि इसे सरल ज्यामितिक चित्रों त्रिभुज ,आयत, वर्ग और वृत द्वारा ही बनाया गया ताकि चित्रकारी विशेषज्ञ की आवश्यकता न हो रंगोली बनाने वाली गृहणी ही आसानी से इसे बना सके !
एक प्रकार से देखा जाए तो यही कार्टून कला का प्रारम्भ भी कहा जा सकता है। भारत के हर प्रदेश में हर उत्सव पर रंगोली,मंडवा, गणगौर, सांझी आदि अनेक चित्र बनाए जाते हैं
सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा और बच्चों को संस्कारी करने के लिए उपयोगी परम्परा है। भाई दीर्घायु हो इतना ही काफ़ी नहीं है। वह माता पिता की सेवा करने वाला भी हो।
राजा दशरथ का धर्म और वचन निभाने का उदाहरण देखिए कि मुझे जानें या न जाने लेकिन श्रवण कुमार को सब जानें !
आइए इस धरोहर को पुष्पित पल्लवित करें, अपने बच्चों को यह कथा सुनाकर उनसे यह स्केच बनवाएं।।
।।शुभ रक्षाबंधन।।
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