May 23, 2025

Star News 21

Suresh Upmanyu Editor in Cheif 9917125300

गुरूपूर्णिमा पर गुरूतत्व की महिमा का वर्णन, महाभारतकाल से लेकर RSS तक का सक्षिप्त वर्णन, ब्रज के गोवर्धन में करोड़ों लोगों का 3 जुलाई को महासंगम…

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LIC वाले हीरालाल…
सम्पूर्ण भारत में गुरुपूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ग, प्रत्येक सम्प्रदाय, प्रत्येक पंथ, प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवनकाल में किसी न किसी रुप में गुरू का वरण जरुर करता है। चाहे वह विरक्त मार्ग पर हो या भक्ति मार्ग हो, जीवन यापन की कला सिखने का मार्ग हो या फिर किसी विद्या, शस्त्र, अस्त्र, कला जो भी हो बिना गुरू के सफल नही होती। जीवन को आगे बढाने में गुरू का महत्व बढा ही आदरणीय व पुज्यनीय हैं। आषाढ़ माह की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इसी दिन महर्षि वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। गुरु पूर्णिमा को वेदव्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। महर्षि वेदव्यास जी ने ही पहली बार मानव जाति को चारों वेदों का ज्ञान दिया था, इसलिए महर्षि वेदव्यास जी को प्रथम गुरु माना जाता है। हिंदू धर्म में गुरु को भगवान से भी श्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि गुरु ही भगवान के बारे में बताते हैं और भगवान की भक्ति का मार्ग दिखाते हैं। ऐसे में प्रत्येक वर्ष आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि को आषाढ़ पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा और गुरु पूर्णिमा के तौर पर बड़े ही उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।

गुरू कोई व्यक्ति या वस्तु नही होता, गुरू ईश्वर का अभिन्न स्वरूप होता हैं। जो ईश्वरीय तत्व ही होता हैं। क्योंकि गुरू व्यक्ति मान लिया जाये तो अपनी दृष्टि में शिष्य न जाने कितने अपराध बना बैठेगा। अनादिकाल से ऐसे अनेकों अद्भुत और दिव्य उदाहरण मिलते है जिन्हे आप जानते भी है और जानकर आपकी समझ में आ जायेगा गुरू व्यक्ति नही तत्व होता हैं। महाभारतकाल का एकलव्य हो या भगवान दत्तात्रेय जी हो अनेक उदाहरण आपको मिल जायेगें, एकलव्य नें गुरू द्रोणाचार्य से नही गुरू के महानस्वरुप में गुरू तत्व की भावना से दिव्यास्त्रों को सिख लिया था, वही भगवान दत्तात्रेयजी ने अपने जीवन में 24 गुरु बनाये थें, ये चौबीस गुरु हैं पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा, समुद्र, अजगर, कपोत, पतंगा, मछली, हिरण, हाथी, मधुमक्खी, शहद निकालने वाला, कुरर पक्षी, कुमारी कन्या, सर्प, बालक, पिंगला, वैश्या, बाण बनाने वाला, मकड़ी, और भृंगी कीट थे।

आप स्वयं जान सकते हैं कि गुरू वास्तविक व्यक्ति नही ईश्वर का ही स्वरूप होता है जो ईश्वर की तरह ही हर जगह अपना ज्ञान का प्रकाश देता है। एक कथा आती कि रास्ते में एक मृत व्यक्ति पडा था उसके चारों तरफ उस मृत व्यक्ति के बन्धु बाधव रो रहे थे। उसी रास्ते से एक व्यक्ति गुजर रहा था। उसने वहा करूण रूदन देखा, देखकर उसे दया आ गयी और वपास अपने गुरू के पास लौटा, उसने अपने गुरू के पैर धोकर चरणोदक लेकर वपास उस मृत व्यक्ति के पास पहूचा और उसने अपने गुरु के चरणोदक को उस मृत व्यक्ति पर छिडका तो वह जीवित हो गया। यह चमत्कार देख सभी ने उसकी प्रशंसा की लेकिन उस व्यक्ति ने गुरु महिमा बताकर आगे बड गया। जब गुरु को पता लगा तो गुरू ने सोचा मेरे तो चरणों में अमृत है फिर क्या था कि कही किसी व्यक्ति की मृत्यु हुई और वह स्वयं ही अपने चरणों को धोकर चरणोदक लेकर गया और मृत व्यक्ति पर छिडका लेकिन वह जीवित नही हुआ, काफी प्रयास के बाद भी मृत व्यक्ति जीवित नही हुआ तब उसने अपने शिष्य को बुलाया और वहा पडे मृत व्यक्ति को जीवित करने को कहा तो उसने अपने गुरू के चरणों को धोया और चरणोदक मृत व्यक्ति पर छिडका तो मृत व्यक्ति जीवित हो गया। तब गुरू की समझ में आया कि ये चमत्कार मुझमें नही इस शिष्य के द्वारा मुझमें ईश्वर के ज्ञान के स्वरुप के गुरूतत्व के लिए पूर्ण समर्पण ने ही इसे यह शक्ति प्रदान की है।

वैसे ही आपने देखा होगा की (RSS) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने व्यक्ति को गुरु नही बनाया केवल तत्व को । इसी लिए आज भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में परम पवित्र भगवान ध्वज की पूजा होती है, क्योंकि संघ के संस्थापक डा० केशवराव बलिराम हेडगेवार जी को पता था कि अगर इस संगठन का गुरू व्यक्ति को बनाया गया तो आज नही तो कभी न कभी कुछ लोग व्यक्ति में दोष देखेंगे और वह आगे चलकर विवाद का कारण बनेगा। जैसा आजकल काफी जगह देखने को मिलता है। इसी लिए संघ के संस्थापक डा० केशवराव बलिराम हेडगेवार जी ने पहले ही सोच समझकर परम पवित्र भागवा ध्वज को ही गुरु बनाया जो लगातार 98 वर्षो से बिना विघ्न के संगठन चलता चला आ रहा है। इसी लिये गुरू में दोष दृष्टि न रखकर ईश्वरीय भाव से पूजा करनी चाहिए और अपने ज्ञान मार्ग को परिपक्व करते हुए अपने लक्ष की तरफ निरंतर बढते रहना चाहिए।

इस वर्ष गुरु पूर्णिमा 2023 तिथि के
पंचांग के अनुसार इस साल आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 2 जुलाई 2023 को रात में 8 बजकर 21 मिनट से हो रही है। इस तिथि का समापन अगले दिन 3 जुलाई, 2023 शाम 5 बजकर 08 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार इस साल गुरु पूर्णिमा 3 जुलाई 2023, सोमवार के दिन मनाई जाएगी। गुरुपूर्णिमा पर ब्रज के गोवर्धन में आपको करोडों लोगों का महासंगम देखने को मिलेगा, जहाँ सभी भगवान श्रीकृष्ण स्वरूप गिरिराज पर्वत की परिक्रमा लगाते है। यहाँ गुरू पूर्णिमा को मुडिया पूनो भी कहते है। जिसकी कथा बडी अद्भुत और आनन्ददायक है। आप स्वयं आकर इसका 3 जुलाई को आनन्द ले सकते हैं…

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