
ग्वालिन दै-दै मोल दही कौ मोकूं माखन नैक चखाय।।
तू सुंदर तेरी मटकी सुंदर नैक खट्टौ मठा चखाय ।।
बरसाना, श्रीराधारानी की प्रिय सखी चित्रा के गांव चिकसौली में गुरूवार को मटकी फोड़ दान लीला का आयोजन हुआ। भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीराधाजी की सखियों से माखन और दही का दान मांगा, न देने पर उन्होंने मटकी फोड़ दी। इस लीला को देखने के लिए हजारों श्रद्धालु आते हैं। श्रीराधारानी की क्रीड़ा भूमि बरसाना में राधाष्टमी से आठ दिन तक भगवान की अलग-अलग लीलाएं संपन्न होती हैं। इसका समापन भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पुर्णिमा को महारास पर होता है। श्रीराधाकृष्ण की प्राचीन लीला स्थली बरसाना के गहवर वन स्थित दो पर्वतों के बीच बनी संकरी गली (साँखरी खोर) में मटकी फोड़ दानलीला संपन्न हुई। इस लीला में मुख्य रूप से नंदगांव और बरसाना के गोस्वामी समाज के लोगों ने भगवान की दानलीला से जुड़े पदों और भजनों को गाकर नृत्य-गान किया। वही सकरी गली में चिकसौली की ओर से चित्रा आदि सखियों के साथ श्रीराधाजी दही से भरी मटकी को लाती है और भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सखाओं के साथ मिलकर दही से भरी मटकी कोक्षफोड़ देते है।
भगवान की इस माधुर्यमयी लीला के दर्शन करने के लिए हजारों की संख्या में श्रृद्धालु ब्रह्मांचल पर्वत पर घंटों बैठे रहे। और ब्रजवासी बरसाना और नन्दगाँव के श्रीजी और ठाकुरजी की तरफ अलग अलग होकर आपस में हँसी मजाक करते हैं। ठाकुरश्रीजी सखियों और ग्वालवालों के संग आपस में लीला में हंसी ठिठोली के मध्य से छीना-झपटी करते हुए यशोदा नंदन ने दही का दान न देने पर वृषभानु नंदिनी और उनकी सखियों की दही से भरी मटकी फोड़ दीं। मटकी फूटते ही प्रसाद निकलता है उस प्रसाद के लिए हजारों की संख्या में ब्रजवासी और श्रृद्धालु प्राप्त करने के लिए एक दुसरे को पीछे हटाते हुए प्रसाद पाने की कोशिश करते हैं। प्रसाद जिसे मिलता है वह अपने आपको भाग्यशाली समझते है।
ठाड़ी रहै ग्वालिनी दै जा हमारौ दान,
यही दान के कारण छोड़ आयौ बैकुंठ सौ धाम
जवाब में सखियां बोलीं..
लाला दूध, दही नाए तेरे बाप कौ,
यह गली भी नाए तेरे बाप की,
छाछ हमारी जो पीवै जो टहल करैं सब दिन की..
मटकी लीला का आशय शोषितों और उत्पीड़न के खिलाफ माना जाता है।
बताया जाता हैं कि ठाकुरश्रीजी की मटकी फोड़ लीला के माध्यम से आतातायी कंस के शोषण और उत्पीड़न के खिलाफ भगवान श्रीकृष्ण ब्रज के गोप ग्वालों को लामबंद कर कंस की सामंती सत्ता के खिलाफ ब्रजजनों की बगावत का संदेश दिया।
इसका व्यापक स्वरूप गिरिराज पूजा के रूप में देवताओं (सरमायेदार) के राजा इंद्र के मानमर्दन की कथा सुनने को मिलती है। श्रीकृष्ण ने अपनी इन लीलाओं (आंदोलनों) के माध्यम कंस की सामंती सत्ता और देवताओं की सरमायेदारी को खारिज कर ब्रज लोकधर्म की स्थापना का काम किया हैं।
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